गणेश चतुर्थी व्रत कथा : Ganesh Chaturthi Katha in Marathi

Ganesh Chaturthi Katha in Marathi : गणेश चतुर्थी भारत के सबसे महत्वपूर्ण और व्यापक रूप से मनाए जाने वाले त्योहारों में से एक है। हर साल, यह त्योहार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है, जो अगस्त या सितंबर के महीने में पड़ता है। इस दिन को भगवान गणेश, जो विघ्नों के विनाशक और शुभता के देवता माने जाते हैं, की आराधना और व्रत करने के लिए समर्पित किया जाता है। गणेश जी का जन्म इसी दिन हुआ था, इसलिए इस दिन का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक है। गणेश चतुर्थी को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन सबसे प्रसिद्ध कथा कुबेर और भगवान गणेश से संबंधित है, जो भगवान गणेश की अद्वितीय बुद्धिमानी और सरलता को दर्शाती है।

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गणेश चतुर्थी व्रत कथा : Ganesh Chaturthi Katha in Marathi
गणेश चतुर्थी व्रत कथा : Ganesh Chaturthi Katha in Marathi

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गणेश चतुर्थी की व्रत कथा का प्रारंभ

प्राचीन समय में धन के देवता कुबेर को अपने धन और वैभव पर अत्यधिक घमंड हो गया था। उन्हें यह लगने लगा था कि उनके पास इतना धन है कि कोई भी देवता उनके समक्ष खड़ा नहीं हो सकता। इस घमंड में कुबेर ने यह निश्चय किया कि वे सभी देवताओं को आमंत्रित करेंगे और अपने धन-वैभव का प्रदर्शन करेंगे, ताकि वे अन्य देवताओं से श्रेष्ठ दिखाई दें। इस योजना के साथ, कुबेर सबसे पहले भगवान शिव और माता पार्वती के पास पहुंचे और उन्हें अपने महल में भोजन करने का निमंत्रण दिया।

भगवान शिव और माता पार्वती का निर्णय

कुबेर जब भगवान शिव और माता पार्वती के पास पहुंचे, तो उन्होंने बड़े विनम्रता से निमंत्रण दिया। लेकिन भगवान शिव, जो योगी स्वभाव के थे, ने कुबेर से कहा कि वे कैलाश पर्वत छोड़कर कहीं नहीं जाते। माता पार्वती ने भी कहा कि वे अकेले नहीं जाएंगी। ऐसे में भगवान शिव ने सुझाव दिया कि कुबेर गणेश जी को अपने साथ ले जाएं। कुबेर ने यह प्रस्ताव सहर्ष स्वीकार कर लिया और गणेश जी को लेकर अपने महल की ओर प्रस्थान किया।

गणेश जी का कुबेर के महल में आगमन

कुबेर ने गणेश जी का महल में बहुत धूमधाम से स्वागत किया। उन्होंने सोने-चांदी के पात्रों में अनेक प्रकार के व्यंजन तैयार करवाए थे, जिनकी गिनती पाँच थी। कुबेर मन ही मन मुस्कुरा रहे थे, क्योंकि उन्हें लगा कि नन्हे से बालक गणेश जी बहुत कम भोजन करेंगे, और उनके महल की शोभा में कोई कमी नहीं आएगी। कुबेर का घमंड इतना बढ़ चुका था कि उन्हें यह अहंकार हो गया था कि उनका भोजन सभी को तृप्त कर देगा।

लेकिन जब गणेश जी ने भोजन करना शुरू किया, तो उनके भोजन की भूख बढ़ती चली गई। उन्होंने पाँचों व्यंजन खा लिए, फिर सोने-चांदी के पात्र भी खाना शुरू कर दिया। गणेश जी ने अपने भोजन की भूख को संतुष्ट नहीं किया, बल्कि उन्होंने महल का पूरा भोजन खा लिया। कुबेर, जो यह सोच रहे थे कि गणेश जी कुछ ही खाएंगे, हक्के-बक्के रह गए। उन्हें समझ में नहीं आया कि क्या करें।

कुबेर की विनती और भगवान शिव के पास लौटना

कुबेर बहुत चिंतित हो गए और उन्होंने भगवान शिव से सहायता मांगने का निर्णय लिया। वे तुरंत कैलाश पर्वत की ओर भागे और भगवान शिव के चरणों में गिरकर क्षमा मांगने लगे। कुबेर ने भगवान शिव से कहा, “हे प्रभु, मैंने अपने अहंकार और धन-वैभव को दिखाने के लिए आपको निमंत्रण दिया था। मैंने यह सोचा था कि मैं सबसे अधिक धनी और प्रभावशाली हूँ, लेकिन अब गणेश जी का पेट ही नहीं भर रहा। कृपया मुझे कोई उपाय बताइए, नहीं तो मेरे सभी भंडार समाप्त हो जाएंगे।”

भगवान शिव ने कुबेर को सलाह दी कि वे अपने अहंकार को त्याग दें और गणेश जी से विनम्रता से क्षमा मांगे। कुबेर ने भगवान शिव की सलाह मानते हुए अपनी भूल को स्वीकार किया और गणेश जी के सामने विनम्र होकर अपनी गलती की माफी मांगी। कुबेर का घमंड चूर हो गया और उन्होंने सच्चे दिल से भगवान गणेश के चरणों में समर्पण किया। तब भगवान गणेश जी ने कुबेर की विनती स्वीकार की और उनका पेट भर गया। गणेश जी ने कुबेर को आशीर्वाद दिया कि उनके भंडार हमेशा भरे रहेंगे, लेकिन साथ ही उन्हें यह सिखाया कि धन और वैभव का घमंड विनाश की ओर ले जाता है।

गणेश जी और चंद्रमा की कथा

कुबेर के महल से लौटते समय, भगवान गणेश अपने वाहन मूषक पर सवार होकर जा रहे थे। रास्ते में एक विचित्र घटना घटी। अचानक, मूषक को कोई डरावना दृश्य दिखा और वह घबरा गया, जिससे गणेश जी मूषक से गिर गए। गिरने के कारण उनके वस्त्र गंदे हो गए। इस घटना से गणेश जी थोड़ा असहज हो गए। उसी समय चंद्रमा आकाश में चमक रहा था और उसने गणेश जी को गिरते हुए देख लिया। चंद्रदेव ने इस घटना को देखकर ठहाका लगाया और गणेश जी का मजाक उड़ाया।

गणेश जी को चंद्रमा का यह व्यवहार बिल्कुल भी पसंद नहीं आया और उन्होंने क्रोधित होकर चंद्रदेव को श्राप दे दिया। गणेश जी ने कहा, “तुमने मेरा अपमान किया है, इसलिए अब तुम्हारा तेज समाप्त हो जाएगा। आज से तुम निस्तेज हो जाओगे।” इस श्राप के कारण चंद्रदेव अत्यंत दुखी हो गए और उन्होंने भगवान गणेश से क्षमा मांगी। चंद्रदेव ने विनम्रता से कहा, “हे प्रभु, मुझसे भारी भूल हो गई है। कृपया मुझे क्षमा करें।”

गणेश जी ने चंद्रदेव की प्रार्थना को सुनकर उन पर दया की और कहा, “तुम्हारा श्राप पूरी तरह समाप्त नहीं होगा, लेकिन मैं इसे कुछ हद तक कम कर दूँगा। महीने में एक दिन अमावस्या के दिन तुम पूरी तरह से निस्तेज हो जाओगे, और शुक्ल पक्ष में धीरे-धीरे बढ़ते हुए पूर्णिमा के दिन तुम पूर्ण रूप से प्रकाशित हो जाओगे। लेकिन जो लोग गणेश चतुर्थी के दिन तुम्हारा दर्शन करेंगे, उन्हें दोष लगेगा।”

यह सुनकर चंद्रदेव ने राहत की सांस ली, लेकिन साथ ही यह भी समझ लिया कि भगवान गणेश के क्रोध से बचना अत्यंत कठिन है। भगवान गणेश ने चंद्रदेव को यह वरदान भी दिया कि जो लोग चतुर्थी के दिन उनका पूजन करेंगे और व्रत करेंगे, उनके जीवन से सभी दोष दूर हो जाएंगे। इस प्रकार चतुर्थी के दिन गणेश जी का पूजन विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना गया।

गणेश चतुर्थी व्रत का महत्व

गणेश चतुर्थी का त्योहार न केवल भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है, बल्कि इसे विघ्नों के नाश के लिए भी मनाया जाता है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता कहा जाता है, जिसका अर्थ है कि वे सभी बाधाओं और समस्याओं को दूर करते हैं। इस दिन, भक्त गणेश जी की पूजा करते हैं, उनका व्रत रखते हैं, और अपने जीवन से सभी समस्याओं को दूर करने के लिए प्रार्थना करते हैं।

व्रत रखने का धार्मिक महत्व बहुत गहरा है। व्रत रखने वाले व्यक्ति को पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। व्रत के दौरान भक्त पूरे दिन उपवास करते हैं और रात के समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करते हैं। इस दिन भगवान गणेश की मूर्ति को घर में स्थापित किया जाता है और भक्तगण विभिन्न प्रकार के व्यंजनों और मिठाइयों से गणेश जी का भोग लगाते हैं। विशेष रूप से मोदक, जो गणेश जी का प्रिय भोजन माना जाता है, इस दिन तैयार किया जाता है।

समाज में गणेश चतुर्थी का प्रभाव

गणेश चतुर्थी का त्योहार केवल धार्मिक महत्व नहीं रखता, बल्कि इसका सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव भी गहरा है। महाराष्ट्र और देश के कई अन्य हिस्सों में यह त्योहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। सार्वजनिक स्थानों पर भगवान गणेश की भव्य मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं और लोग सामूहिक रूप से गणेश जी की पूजा करते हैं। यह त्योहार सामाजिक एकता और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक बन गया है।

निष्कर्ष

गणेश चतुर्थी की व्रत कथा हमें अहंकार और घमंड से बचने की शिक्षा देती है। भगवान गणेश की सरलता और बुद्धिमानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में सच्चा सुख और समृद्धि केवल विनम्रता, धर्म, और श्रद्धा से प्राप्त होती है। भगवान गणेश की पूजा और व्रत करने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि, और शांति का आगमन होता है।

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